Contents
- 1 गर्भकालीन (जेस्टेशनल) डायबिटीज क्या है? Gestational Diabetes Kya Hai?
- 2 गर्भकालीन डायबिटीज के लक्षण – Gestational Diabetes Ke Lakshan
- 3 गर्भकालीन डायबिटीज के कारण – Gestational Diabetes Ke Karan
- 4 गर्भकालीन डायबिटीज के जोखिम – Gestational Diabetes Ke Risk
- 5 गर्भकालीन डायबिटीज से बचाव – Gestational Diabetes Se Bachav
- 6 गर्भकालीन डायबिटीज के वर्ग – Gestational Diabetes Classes
- 7 गर्भकालीन डायबिटीज की जटिलताएं – Gestational Diabetes Ki Complications
- 8 गर्भकालीन डायबिटीज का निदान – Gestational Diabetes Ka Nidan
- 9 गर्भकालीन डायबिटीज का उपचार – Gestational Diabetes Ka Upchar
- 10 गर्भकालीन डायबिटीज का बच्चे पर प्रभाव – Gestational Diabetes Ka Bachche Par Prabhav
- 11 गर्भकालीन डायबिटीज आहार योजना – Gestational Diabetes Diet Plan
- 12 मंत्रा केयर – MantraCare
गर्भकालीन (जेस्टेशनल) डायबिटीज क्या है? Gestational Diabetes Kya Hai?
गर्भकालीन डायबिटीज को जेस्टेशनल डायबिटीज भी कहते हैं। इस स्थिति में गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है। इस प्रकार की डायबिटीज पहली बार गर्भवती महिलाओं में देखी गयी है।
गर्भकालीन डायबिटीज जैसी डायबिटीज के अन्य प्रकारों की शुरुआत तब होती है, जब आपका शरीर इंसुलिन का उत्पादन या इस्तेमाल सामान्य तरीके से करने में असमर्थ होता है। पर्याप्त इंसुलिन के बिना ग्लूकोज ऊर्जा के लिए कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर सकता है, इसलिए यह ब्लड में ग्लूकोज या शुगर के रूप में जमा हो जाता है। इस प्रकार की डायबिटीज शिशु और मां दोनों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है।
हालांकि, दैनिक जीवन में किए गए कुछ स्वस्थ बदलावों से गर्भकालीन डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। गर्भकालीन डायबिटीज की कोई बड़ी या गंभीर जटिलताएं नहीं होती हैं, क्योंकि यह बच्चे के जन्म के बाद गायब हो जाती है। इसके बावजूद गर्भवती महिलाओं को अपना ब्लड शुगर लेवल नियंत्रित करने के लिए कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए। इस स्थिति में गर्भवती महिलाएं स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम की मदद ले सकती हैं, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर डॉक्टर से परामर्श के बाद आपको दवाएं भी लेनी पड़ सकती हैं, जिससे इस स्थिति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
गर्भकालीन डायबिटीज के लक्षण – Gestational Diabetes Ke Lakshan
आमतौर पर गर्भकालीन डायबिटीज के लक्षण हल्के होते हैं। कई मामलों में गर्भकालीन डाबिटीज शायद ही कभी लक्षण दिखाती है, जिसके कारण इसका पता लगाना बेहद मुश्किल होता है। अक्सर जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण डायबिटीज मेलिटस की तरह ही होते हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं-
- ज़्यादा प्यास
- थकान
- लगातार पेशाब आना
- धुंधली दृष्टि
- खर्राटे
गर्भकालीन डायबिटीज के कारण – Gestational Diabetes Ke Karan
हालांकि, गर्भावधि डायबिटीज का स्पष्ट कारण अभी अज्ञात है, लेकिन प्लेसेंटा से स्रावित अलग-अलग प्रकार के हार्मोन्स को इसका कारण माना जाता है, जैसे:
- मानव अपरा लैक्टोजेन (ह्यूमन प्लेसेंटा लैक्टोजेन)/एचपीएल
- इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ाने वाले अन्य हार्मोन
यह हार्मोन गर्भावस्था को बनाए रखते हैं, इसलिए समय के साथ शरीर में इनकी मात्रा बढ़ जाती है। यह ब्लड शुगर लेवल या शरीर के इंसुलिन प्रतिरोध को भी बढ़ा सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का शरीर स्वाभाविक रूप से इंसुलिन प्रतिरोधी हो जाता है। इसलिए बच्चे को प्रदान किए जाने वाले ब्लड में ज़्यादा ग्लूकोज होता है, लेकिन सूक्ष्म इंसुलिन प्रतिरोध स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
आमतौर पर हमारा शरीर इंसुलिन का उत्पादन करता है, जो शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा के लिए इस शुगर को अवशोषित करने में मदद करता है। कुछ स्थितियों में महिलाओं का अग्न्याशय इतना ज़्यादा इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर सकता है, जिससे ब्लड शुगर का लेवल ज़्यादा हो जाता है। यही वजह है कि इन कारकों को गर्भकालीन डायबिटीज का कारण माना जाता है।
गर्भकालीन डायबिटीज के जोखिम – Gestational Diabetes Ke Risk
कुछ कारक गर्भकालीन डायबिटीज के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। कई लोगों में इस प्रकार का डायबिटीज होने की ज़्यादा संभावना है, जिनमें निम्नलिखित बातें शामिल होती हैं:
- अगर आप अफ्रीकी-अमेरिकी, एशियाई, हिस्पैनिक, अलास्का मूल निवासी, प्रशांत द्वीप वासी, या मूल अमेरिकी हैं।
- अगर आपको प्रीडायबिटीज है, क्योंकि ऐसी स्थिति में ब्लड शुगर सामान्य से ज़्यादा होता है, लेकिन इतना ज़्यादा नहीं होता कि उसे डायबिटीज कहा जा सके।
- गर्भावस्था से पहले ज़्यादा वजन वाले बच्चों में डायबिटीज विकसित होने का ज़्यादा जोखिम होता है।
- डायबिटीज का पारिवारिक इतिहास भी डायबिटीज के जोखिम को बढ़ाता है। (अगर आपके परिवार के किसी सदस्य को डायबिटीज है)।
- पहले गर्भकालीन डायबिटीज हो चुका हो।
- अगर कोई व्यक्ति पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) से पीड़ित है।
- इंसुलिन से जुड़ी अन्य समस्याओं से पीड़ित व्यक्ति में इसके विकास का ज़्यादा खतरा होता है।
- अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रॉल, हृदय की बीमारी या अन्य जटिलताओं जैसी स्थितियां हैं।
- अगर किसी महिला ने 9 पाउंड से ज़्यादा वजन के बच्चे को जन्म दिया है।
- अगर आपकी उम्र 25 से ज़्यादा है।
- गर्भपात हुआ हो या अपरिपक्व बच्चे को जन्म देने वाली महिलाओं में इसका संभावित जोखिम है।
गर्भकालीन डायबिटीज से बचाव – Gestational Diabetes Se Bachav
ज्यादातर मामलों में गर्भकालीन डायबिटीज को रोका जा सकता है, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है। अगर आपको पहले इस प्रकार का डायबिटीज हुआ है, तो इसे दोबारा होने से रोकने के लिए आप कुछ सावधानियां बरत सकती हैं। गर्भकालीन डायबिटीज को प्रारंभिक अवस्था में नियंत्रित करने से आपको बाद में जीवन में टाइप 2 डायबिटीज होने की संभावना कम होती है।
- स्वस्थ खाएं: डायबिटीज वाले लोगों को ज़्यादा फाइबर और कम फैट के साथ कम कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। ब्लड शुगर कंट्रोल करने के लिए आपको फल, सब्जियां, साबुत अनाज खाने की सलाह दी जाती है। बाजार में कम कार्ब्स वाले कई तरह के खाद्य पदार्थ मिलते हैं, इसलिए आप स्वाद से समझौता किए बिना इन खाद्य पदार्थों का सेवन कर सकते हैं।
- शारीरिक रूप से सक्रिय रहें: शारीरिक सक्रियता सभी के लिए फायदेमंद है, लेकिन डायबिटीज वाले लोगों के लिए खासतौर से ज़रूरी है। गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के दौरान एक्सरसाइज़ करने से गर्भकालीन डायबिटीज को रोकने में मदद मिल सकती है। ऐसी स्थिति में आपको भारी व्यायाम के बजाय कुछ मिनटों तक टहलने या योग करने की सलाह दी जाती है। आप पार्क में जाने या दैनिक काम करने जैसी दैनिक गतिविधियों को भी अपनी जीवनशैली में शामिल कर सकती हैं।
- ब्लड शुगर की अक्सर निगरानी करें: गर्भावस्था आपके शरीरिक कामों को प्रभावित करती है, क्योंकि इस दौरान हार्मोन्स में बदलाव होता है। ऐसे में स्वस्थ गर्भावस्था के लिए अपने ब्लड शुगर को ट्रैक करना ज़रूरी है। छोटे-मोटे बदलाव नज़र आने पर आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि खाने से पहले और बाद में ब्लड शुगर में उतार-चढ़ाव आम है। अगर आपको स्तर ज़्यादा लगता है, तो इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करें।
- स्वस्थ वजन बनाए रखें: बच्चे की योजना बनाते समय या गर्भावस्था की शुरूआत से पहले स्वस्थ वजन तक पहुंचने की कोशिश करें। ज़्यादा पाउंड में वजन घटाने से न सिर्फ आपको गर्भकालीन डायबिटीज को रोकने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे आपके और आपके बच्चे के समग्र स्वास्थ्य को भी फायदा होगा।
गर्भकालीन डायबिटीज के वर्ग – Gestational Diabetes Classes
गर्भकालीन डायबिटीज दो प्रकार की होती हैः
- क्लास ए1 जेस्टेशनल डायबिटीज: इसे आहार और व्यायाम से नियंत्रित किया जा सकता है।
- क्लास ए2 जेस्टेशनल डायबिटीज: इस प्रकार की गर्भकालीन डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन या अन्य ओरल दवाओं की ज़रूरत पड़ती है।
गर्भकालीन डायबिटीज की जटिलताएं – Gestational Diabetes Ki Complications
ब्लड शुगर के नियंत्रित स्तर में चिंता की कोई बात नहीं है, लेकिन ठीक से नियंत्रित नहीं किये जाने पर गर्भावस्था में कुछ जटिलताएं पैदा कर सकता है, जैसे:
ज्यादा बढ़ा हुआ बच्चा
गर्भकालीन डायबिटीज के अलग-अलग कारणों से मां का ब्लड शुगर बढ़ जाता है, लेकिन अनियंत्रित गर्भकालीन डायबिटीज में शुगर का स्तर नियंत्रित नहीं रहता, जिससे बच्चा ज़्यादा बढ़ा हुआ हो सकता है। ज़्यादा बढ़े हुए बच्चे 9 पाउंड से ज़्यादा वजन वाले बच्चे स्वस्थ प्रसव में समस्या पैदा कर सकते हैं। ऐसे मामले में बच्चे को जन्म देने के लिए मां को सी-सेक्शन की ज़रूरत होती है, जिसमें जन्म के दौरान ज़्यादा दबाव के कारण बच्चे को कई शारीरिक चोट लग सकती हैं।
सी-सेक्शन
गर्भकालीन डायबिटीज के मामले में बच्चा ज़्यादा बड़ा हो जाता है, जिससे बच्चे के जन्म में जटिलताएं होती हैं। गर्भकालीन डायबिटीज के ऐसे में गर्भवती महिला के लिए डिलीवरी का तरीका सी-सेक्शन है। सी-सेक्शन में मां को बच्चे के जन्म से ठीक होने के लिए ज़्यादा समय की ज़रूरत होती है।
हाई ब्लड प्रेशर (प्रीक्लेम्पसिया)
बढ़े हुए ब्लड शुगर लेवल के आधार पर गर्भकालीन डायबिटीज की अन्य जटिलताएं भी हो सकती हैं और इन्हीं में से एक प्रीक्लेम्पसिया या हाई ब्लड प्रेशर है। हाई ब्लड प्रेशर से उंगलियों और पैर की उंगलियों में सूजन आ सकती है, जो आसानी से ठीक नहीं होती है। प्रीक्लेम्पसिया से बच्चे और मां दोनों को गंभीर नुकसान की संभावना होती है। इसे नियंत्रित करने के लिए इसकी बारीकी से निगरानी करना ज़रूरी है। स्वस्थ आहार जैसे जीवनशैली में किए गए कुछ बदलावों से इस स्थिति को सुधारा जा सकता है। डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं में हाई ब्लड प्रेशर का ज़्यादा खतरा होता है।
जीवन में बाद में टाइप-2 डायबिटीज
गर्भकालीन डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं को बाद में जीवन में टाइप 2 डायबिटीज होने का ज़्यादा खतरा होता है। इससे जन्म के बाद बच्चे में मोटापे का खतरा बढ़ जाता है, जिसके कारण कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की संभावना रहती है।
प्रारंभिक जन्म या मृत जन्म
हाई ब्लड शुगर के कारण समय से पहले बच्चे के जन्म का खतरा बढ़ जाता है। इसमें नियत तारीख से पहले मां को प्रसव पीड़ा हो सकती है। इसके अलावा शिशु का वजन ज़्यादा होने से समय से पहले सी-सेक्शन कराने की सलाह भी दी जाती है। अनुपचारित गर्भकालीन डायबिटीज जन्म से पहले या बाद में जीवन में बच्चे की मृत्यु का कारण बनता है। हालांकि, ऐसा बहुत कम मामलों में होता है। हाई ब्लड शुगर लेवल वाली महिलाओं से जल्द जन्म लेने वाले शिशुओं को सांस लेने में कठिनाई हो सकती है, जिसे श्वसन या रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कहते हैं।
गर्भावस्था के दौरान ब्लड शुगर लेवल को टारगेट करें
गर्भवती महिलाओं के लिए ब्लड शुगर लेवल है:
- खाने से पहले- 95 मिलीग्राम/डीएल या उससे कम
- खाने के एक घंटे बाद- 140 मिलीग्राम/डीएल या उससे कम
- खाने के दो घंटे बाद- 120 मिलीग्राम/डीएल या उससे कम
गर्भकालीन डायबिटीज का निदान – Gestational Diabetes Ka Nidan
आपको डॉक्टर द्वारा बताए गए सभी चैक-अप करवाने चाहिए, ताकि गर्भकालीन डायबिटीज का समय पर निदान किया सके। अगर आपको गर्भकालीन डायबिटीज का कोई संभावित जोखिम नहीं है, तो भी आपके डॉक्टर गर्भावस्था के 24 से 28 हफ्ते में आपके ब्लड शुगर लेवल की जांच करेंगे। अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन द्वारा गर्भवती महिलाओं को नियमित रूप से गर्भकालीन डायबिटीज की जांच कराने की सलाह दी जाती है। इस दौरान ब्लड शुगर की जांच के लिए किये जाने वाले परीक्षण इस प्रकार हैं:
ग्लूकोज चैलेंज टेस्ट
आमतौर पर ग्लूकोज चैलेंज टेस्ट गर्भवती महिलाओं में ब्लड शुगर लेवल की जांच के लिए किया जाता है, जिसमें किसी तैयारी की ज़रूरत नहीं होती है। इस दौरान ब्लड शुगर बढ़ाने के लिए आपको पीने के लिए 50 ग्राम ग्लूकोज दिया जाता है और एक घंटे बाद ब्लड सैंपल लिया जाता है, ताकि यह जांच की जा सके कि आपके शरीर ने उस शुगर को कैसे संभाला।
अगर आपका ब्लड शुगर लेवल सामान्य से ज़्यादा आता है, तो तीन घंटे के बाद एक और टेस्ट किया जाता है। इसमें आपको 100 ग्राम ग्लूकोज पीने के तीन घंटे के बाद दोबारा ग्लूकोज चैलेंज टेस्ट करने के लिए ब्लड सैंपल देना होता है। इन जांचों में ब्लड शुगर का लेवल असामान्य पाये जाने पर डॉक्टर खाली पेट ब्लड शुगर की जांच कर सकते हैं, जिसे फास्टिंग ग्लूकोज ब्लड शुगर टेस्ट कहते हैं।
गर्भकालीन डायबिटीज का उपचार – Gestational Diabetes Ka Upchar
गर्भकालीन डायबिटीज आमतौर पर अस्थायी होती है, जो बच्चे के जन्म के बाद गायब हो जाती है। हालांकि आपको जल्द से जल्द इसका उपचार करवाना चाहिए, क्योंकि समय पर उपचार नहीं किए जाने से गर्भकालीन डायबिटीज आपको और आपके बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है। गर्भावस्था के दौरान इसे नियंत्रित करने के लिए आपको निम्न कार्य करने चाहिए:
- सही खाएं- सुनिश्चित करें कि आप किसी भी कीमत पर अपना भोजन नहीं छोड़ें और दिन में कम से कम तीन बार भोजन करें। स्वस्थ और प्राकृतिक खाद्य पदार्थ खाएं, जिनमें ग्लूकोज की मात्रा कम हो। इस दौरान आपको केक और आइसक्रीम जैसे खाद्य पदार्थों के बजाय फलों, नट्स और बीजों का ज़्यादा सेवन करना चाहिए।
- नियमित तौर पर व्यायाम करें- नियमित तौर पर व्यायाम करके आप न सिर्फ अपने वजन को बढ़ने से रोक सकते हैं, बल्कि इससे सामान्य प्रसव में भी मदद मिलती है। आप सिर्फ कुछ मिनटों के लिए टहल या हल्के व्यायाम कर सकते हैं। हालांकि, किसी भी व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श ज़रूर करें, क्योंकि किसी भी भारी व्यायाम से आपकी जटिलताएं बढ़ सकती हैं।
- अपने ब्लड शुगर लेवल पर नज़र रखें- दिन में चार या ज़्यादा बार अपने ब्लड शुगर लेवल की जांच करें। किसी भी तरह की परेशानी होने पर तुरंत डॉक्टर से बात करें।
- अगर ज़रूरी हो तो इंसुलिन लें- अगर आपका ब्लड शुगर लेवल सामान्य नहीं हो पाता है, तो डॉक्टर आपको कुछ इंसुलिन लिखेंगे। ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रण में रखने के लिए आपको ओरल दवाएं या इंसुलिन इंजेक्शन भी दिए जा सकते हैं।
- अपनी गर्भावस्था को मॉनिटर करें- अगर आपको गर्भकालीन डायबिटीज है, तो अपने बच्चे के स्वास्थ्य की ज़्यादा बार जांच करें। ऐसे में अपने डॉक्टर के संपर्क में रहना और स्वस्थ दैनिक आदतों को अपनाना सबसे ज़रूरी है।
गर्भकालीन डायबिटीज का बच्चे पर प्रभाव – Gestational Diabetes Ka Bachche Par Prabhav
गर्भकालीन डायबिटीज को नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन इसके अलावा आप अपने ब्लड शुगर लेवल को सामान्य करने की कोशिश भी कर सकते हैं। बच्चे के जन्म के ठीक बाद डॉक्टर नवजात शिशु के ब्लड शुगर की जांच करते हैं। ब्लड शुगर सामान्य से कम होने पर बच्चे को तब तक आईवी (IV) पर रखा जाता है, जब तक कि वह वापस सामान्य न हो जाए।
ऐसी स्थिति में आपके बच्चे को किसी बड़ी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। हालांकि, बच्चा ज़्यादा बड़ा हो सकता है और यह पीलिया से भी जुड़ा हुआ है। पीलिया आमतौर पर कई नवजात शिशुओं में होता है और उपचार के बाद जल्दी ठीक हो जाता है। बच्चे को बाद में जीवन में टाइप 2 डायबिटीज विकसित होने का ज़्यादा खतरा होता है, लेकिन स्वस्थ जीवनशैली से इसे रोका जा सकता है।
गर्भकालीन डायबिटीज आहार योजना – Gestational Diabetes Diet Plan
गर्भवती महिला को अपने खाने में ज़्यादा सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि इसका प्रभाव गर्भवती महिला और उसके बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ता है। ऐसे में शुगर लेवल को सामान्य रखने के लिए हर 2 से 3 घंटे में खाने की सलाह दी जाती है, जिसमें गर्भवती महिलाओं को कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट के सेवन पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए।
कार्बोहाइड्रेट
कार्ब्स या सिंपल कार्ब्स काटने से डायबिटीज और ब्लड शुगर स्पाइक्स को मैनेज करने में मदद मिलती है। आपके डॉक्टर आपको बताएंगे कि आपको अपनी हाइट और हेल्थ के हिसाब से कार्ब्स की कितनी मात्रा लेनी चाहिए। इसमें आप कुछ हेल्दी कार्ब्स खा सकते हैं, जैसे-
- साबुत अनाज
- बीन्स, दाल और फलियां
- स्टार्च वाली सब्जियां
प्रोटीन
प्रोटीन सभी को लेना चाहिए, लेकिन गर्भवती महिलाओं के लिए यह ज़्यादा जरूरी है। उन्हें दिन में दो से तीन सर्विंग प्रोटीन खाना चाहिए, जिसके अच्छे स्रोत पोल्ट्री, मछली और टोफू हैं। अगर आप शाकाहारी हैं, तो आपको प्रोटीन की कमी को पूरा करने के लिए दालों का सेवन करने की सलाह दी जाती है।
फैट
फैट को लेकर आपको ज़्यादा सावधानी बरतने की ज़रूरत है। आपको अनहेल्दी खाने से परहेज करना चाहिए क्योंकि यह आपका वजन बढ़ाते हैं, जो आपके लिए हानिकारक हो सकता है। आप अपने आहार में हेल्दी फैट जैसे नट्स, बीज, जैतून का तेल और एवोकाडो को शामिल कर सकते हैं।
मंत्रा केयर – MantraCare
यदि आप मधुमेह से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे हैं, तो मंत्रा केयर मदद के लिए उपलब्ध है। किसी मधुमेह विशेषज्ञ से जुड़ने के लिए अपना निःशुल्क ऑनलाइन मधुमेह परामर्श सत्र अभी बुक करें।
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