Contents
- 1 टाइप 1 डायबिटीज क्या है? Type 1 Diabetes Kya Hai?
- 2 टाइप 2 डायबिटीज – Type 2 Diabetes
- 3 टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण – Type 1 Diabetes Ke Lakshan
- 4 टाइप 1 डायबिटीज के कारण – Type 1 Diabetes Ke Karan
- 5 टाइप 1 डायबिटीज के जोखिम – Type 1 Diabetes Ke Risk
- 6 टाइप 1 डायबिटीज का उपचार – Type 1 Diabetes Ka Upchar
- 7 मंत्रा केयर – MantraCare
टाइप 1 डायबिटीज क्या है? Type 1 Diabetes Kya Hai?
टाइप 1 डायबिटीज को समझने के लिए सबसे पहले आपको इस बारे में जानना ज़रूरी है कि आपका शरीर कैसे काम करता है। आप जो भोजन खाते हैं, उसमें मौजूद कार्बोहाइड्रेट शुगर मॉलिक्यूल्स में टूट जाते हैं, जिन्हें ग्लूकोज के नाम से जाना जाता है। यह ग्लूकोज आपके रक्तप्रवाह में प्रवेश करता है, जिसके बाद आपका अग्न्याशय (पैनक्रियाज़) इंसुलिन हार्मोन का उत्पादन करता है।
इंसुलिन का काम आपके शरीर में मौजूद ग्लूकोज को रक्तप्रवाह से अलग-अलग कोशिकाओं या कुछ अन्य शरीरिक हिस्सों में पहुंचाना है। इंसुलिन शरीर की कोशिकाओं को खुलने का संदेश देता है, जिसकी मदद से ग्लूकोज उनमें प्रवेश करने में सक्षम हो पाता है। शरीर की कोशिकाएं इस ग्लूकोज का इस्तेमाल करती हैं और शरीर के समग्र काम के लिए उन्हें ऊर्जा में बदलती हैं।
टाइप 1 डायबिटीज के मामले में आपका अग्न्याशय सामान्य की तरह इंसुलिन का उत्पादन करने में असमर्थ होता है और ग्लूकोज कोशिकाओं तक नहीं पहुंचाया जाता है। यह ग्लूकोज आपके रक्त में इकट्ठा होता रहता है, जिससे शरीर में ब्लड शुगर के लेवल में बढ़ोतरी होती है।
टाइप 2 डायबिटीज – Type 2 Diabetes
टाइप 2 डायबिटीज के मामले में अग्न्याशय इंसुलिन बनाता है। हालांकि, कोशिकाएं इसके उचित इस्तेमाल का विरोध करती हैं, जिसे इंसुलिन प्रतिरोध कहते हैं। बदले में अग्न्याशय कोशिकाओं में ग्लूकोज को बदलने के लिए ज़्यादा इंसुलिन का उत्पादन करता है और इंसुलिन प्रतिरोध के कारण ग्लूकोज रक्त में बनता है। कम शब्दों में कहें, तो टाइप 1 डायबिटीज का कारण इंसुलिन की कमी है, जबकि टाइप 2 डायबिटीज के मामले में इंसुलिन मौजूद है, लेकिन ठीक से काम करने में असमर्थ होती है।
टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण – Type 1 Diabetes Ke Lakshan
आइए अब इस बीमारी के लक्षण और खतरनाक संकेतों के बारे में जानते हैं। अगर आप टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित हैं, तो निम्नलिखित लक्षणों और संकेतों का अनुभव कर सकते हैं:
- आपको बार-बार पेशाब आने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आपकी किडनी पेशाब के ज़रिए फालतू ग्लूकोज को बाहर निकालने की कोशिश करती है।
- आपको सामान्य से ज़्यादा प्यास लगती है, क्योंकि बार-बार पेशाब आने से आपके शरीर में पानी की कमी हो जाती है।
- ब्लड शुगर का लेवल लंबे समय तक ज़्यादा रहने से शरीर का पानी आंखों के लेंस में खिंच जाता है, जिससे आंखें सूज जाती हैं और दृष्टि धुंधली हो जाती है।
- सामान्य से बहुत ज़्यादा थकान महसूस होना, क्योंकि डायबिटीज से कारण आपकी ऊर्जा का प्रमुख स्रोत ग्लूकोज आपके ब्लड में रहता है और कोशिकाओं तक अच्छी तरह से नहीं पहुंचाया जाता है।
- अचानक वजन में कमी आना।
- सांस से महक आना।
ज्यादातर मामलों में यह लक्षण बचपन में दिखने लगते हैं, जिसकी वजह से टाइप 1 डायबिटीज को किशोर डायबिटीज (जुवेनाइल डायबिटीज) भी कहते हैं। इनमें से किसी भी लक्षण का अनुभव होने पर आपको तुरंत डॉक्टर से मिलने की सलाह दी जाती है।
टाइप 1 डायबिटीज के कारण – Type 1 Diabetes Ke Karan
टाइप 1 डायबिटीज के कारण फिलहाल स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन विशेषज्ञों द्वारा कुछ कारकों को टाइप 1 डायबिटीज का कारण माना जाता है, जो ऐसी स्थितियों के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैंः
- जीन- इनमें सबसे पहला कारक आपके जीन हैं। अगर आपके परिवार या आपके माता-पिता को टाइप 1 डायबिटीज है, तो आपके भी टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है।
- आहार- इसका दूसरा कारक आपके आहार को माना जाता है। हालांकि, विशेषज्ञ यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आपका आहार इस बीमारी में क्या भूमिका निभाता है।
साथ ही विशेषज्ञों का मानना है कि टाइप 1 डायबिटीज का अन्य कारण आपकी कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) है, क्योंकि इससे आपका शरीर बीमारियों के संपर्क में आ सकता है। टाइप 1 डायबिटीज वाले लोगों में बाहरी संक्रमण प्रतिरक्षा प्रणाली के अंदर प्रवेश करके शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं में हमला करते हैं। प्रतिरक्षा प्रणाली अग्न्याशय में इंसुलिन-उत्पादक बीटा कोशिकाओं को नष्ट कर देती है, जिसकी वजह से शरीर इंसुलिन का उत्पादन करने में असमर्थ होता है।
टाइप 1 डायबिटीज के जोखिम – Type 1 Diabetes Ke Risk
टाइप 1 डायबिटीज से संबंधित जोखिमों और जटिलताएं तेजी हल्के से लेकर गंभीर होती हैं। हम सभी जानते हैं कि इंसुलिन की गैर-मौजूदगी टाइप 1 डायबिटीज का कारण है, जिससे उच्च रक्त शर्करा (हाई ब्लड शुगर) यानी हाइपरग्लेसेमिया की समस्या होती है। यह आपके शरीर में अन्य कई समस्याओं का कारण बनती है, जैसे:
डायबिटीज केटोएसिडोसिस (डीकेए)
डायबिटीज केटोएसिडोसिस की स्थिति में आपके शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा उत्पादन के लिए ग्लूकोज नहीं मिलता है, तो वह जमा फैट का शिकार करते हैं और ऊर्जा पैदा करने के लिए उन्हें तोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया में कीटोन्स उत्पन्न होता है, जो आपके रक्त को अम्लीय बनाता है।
नसों और रक्त वाहिकाओं को नुकसान
अगर आपका ब्लड शुगर लेवल लंबे समय तक लगातार हाई रहता है, तो यह आपकी नसों, आंखों, किडनी और हृदय में मौजूद रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है।
हृदय की बीमारी (कार्डियोवैस्कुलर डिजीज)
आप रक्त के थक्के, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल से भी पीड़ित हो सकते हैं। इन सभी समस्याओं के कारण आपको सीने में दर्द, दिल का दौरा, स्ट्रोक और दिल की धड़कन रुकने जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।
डायबिटिक न्यूरोपैथी
डायबिटीज के कारण किडनी के खराब होने को डायबिटिक न्यूरोपैथी कहते हैं। टाइप 1 डायबिटीज वाले लगभग 20 से 30 प्रतिशत लोग इस नुकसान यानी डायबिटिक नेफ्रोपैथी से गुजरते हैं। आसान शब्दों में कहें, तो यह एक किडनी फेलियर है, जिसके बाद आपकी किडनी शरीर से फालतू अपशिष्ट, नमक और पानी को बाहर नहीं निकाल पाती है और आपका शरीर विषैला (टॉक्सिक) हो जाता है।
रेटिनोपैथी
रेटिनोपैथी डायबिटीज के कारण होने वाली आंखों की समस्या है और यह लगभग 80 प्रतिशत वयस्कों में ध्यान देने योग्य है, जिनके लिए 15 से 25 वर्षों तक टाइप 1 डायबिटीज का निदान किया गया है। यह अंधेपन का कारण भी हो सकता है।
खराब रक्त प्रवाह और नसों के नुकसान की वजह से आपके शरीरिक अंगों में संवेदनशीलता का नुकसान होता है। यह खासतौर से आपके पैरों के क्षेत्र में देखा जाता है, जिसके कारण आप कोई सनसनी महसूस नहीं कर पाते हैं। फिर चाहे आपको कोई कट लगा हो या घाव हो, जिसकी वजह से आगे बड़े और असहनीय घाव हो सकते हैं।
इस स्थिति में डॉक्टर के पास एक ही विकल्प बचता है कि शरीर से उस हिस्से को अलग कर दिया जाए। ऐसे में ज़रूरी है कि आप अपने ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखें और टाइप 1 डायबिटीज को मैनेज करें।
टाइप 1 डायबिटीज का उपचार – Type 1 Diabetes Ka Upchar
टाइप 1 डायबिटीज में प्राथमिक इलाज के तहत इंसुलिन की मदद से ब्लड शुगर लेवल को मैनेज किया जाता है। टाइप 1 डायबिटीज वाले लगभग सभी लोगों को अपने ग्लूकोज लेवल को मैनेज करने के लिए इंसुलिन शॉट्स की ज़रूरत होती है, जिसे आप इंजेक्शन या पंप की मदद से भी ले सकते हैं।
इंसुलिन शॉट्स
डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक आपको अपने शरीर की जरूरत के हिसाब से ही इंसुलिन लेना चाहिए। रैपिड-एक्टिंग इंसुलिन सहित कई प्रकार के इंसुलिन शॉट्स शरीर में शॉट लेने के लगभग 15 मिनट बाद काम करना शुरू करते हैं। यह लगभग 2 से 4 घंटे तक काम करता है, जिसमें से पहला 1 घंटा पीक टाइम होता है। एक अन्य रेगुलर या शॉर्ट-एक्टिंग इंसुलिन है, जिसे काम करने में 30 मिनट का समय लगता है। 2 से 3 घंटे में अपने चरम पर पहुंच जाता है और यह 3 से 6 घंटे तक शरीर में रहता है।
इंसुलिन शॉट्स के साथ आपको अपने भोजन के समय और अन्य गतिविधियों को ज़रूरत के हिसाब से मैनेज और एडजस्ट करने की ज़रूरत होती है। डॉक्टर आपको यह पता लगाने में मदद कर सकते हैं कि एक दिन में आपको कितने शॉट्स की ज़रूरत होगी। इन सबके अलावा आपको आहार, व्यायाम और जीवन शैली के साथ अपने ब्लड शुगर लेवल को कम करने के लिए अन्य उपायों के बारे में सोचने की ज़रूरत है।
आहार
- अपने भोजन से ग्लूकोज वाली सामग्री को हटा दें।
- अगर आप मोटे हैं, तो अपने वजन को 5 से 10 प्रतिशत तक कम करने के लिए स्वस्थ आहार का पालन करें।
- साबुत अनाज और सब्जियों से भरपूर आहार में बदलाव करें।
- ज्यादा मात्रा में पानी पिएं
व्यायाम
- मध्यम-तीव्रता वाले व्यायाम करें, जैसे चलना। इन्हें आप रोजाना कम से कम तीस मिनट तक कर सकते हैं।
जीवनशैली
- मेडिटेशन जैसे तरीकों की मदद से आप अपने जीवन में तनाव के स्तर को कम कर सकते हैं।
- दिन में कम से कम 7 या 8 घंटे की अच्छी नींद लें।
- अपने कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रण में रखें।
- शराब और धूम्रपान से बचें।
इन बदलावों को अपनी दिनचर्या में शामिल करके न सिर्फ आप अपने ब्लड शुगर लेवल को कम करेंगे, बल्कि इससे आप अपना संपूर्ण स्वास्थ्य भी अच्छा रख सकते हैं।
इंसुलिन शॉट्स लेते समय याद रखने वाली बातें
इंसुलिन शॉट्स की सलाह देते समय आपके डॉक्टर तीन ज़रूरी बिंदुओं पर ध्यान देते हैं।
1. पहला बिंदु है शुरुआत, जिसमें देखा जाता है कि इंसुलिन को आपके रक्तप्रवाह तक पहुंचने में कितना समय लगता है और ब्लड शुगर के लेवल को कम करने के लिए काम करना शुरू कर देता है
2. दूसरा पीक टाइम है जो वह समय है, जब इंसुलिन आपके ब्लड में शुगर के लेवल को कम करने की अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर रहा है।
3. और तीसरे को अवधि कहा जाता है। यह वह अवधि है जिसके लिए आपके शरीर के अंदर लिया गया इंसुलिन शुरू होने के बाद भी काम करता रहता है।
इन कारकों के आधार पर यानी शुरुआत, पीक टाइम और अवधि जैसे कई प्रकार के इंसुलिन मौजूद हैं। उदाहरण के लिए:
- रैपिड-एक्टिंग इंसुलिन: शरीर में शॉट लगने के लगभग 15 मिनट बाद यह काम करना शुरू कर देता है। यह लगभग 2 से 4 घंटे काम करता है, जिसमें से पहला 1 घंटा पीक टाइम होता है
- रेगुलर या शॉर्ट एक्टिंग इंसुलिन: इसे एक्ट करने में 30 मिनट का समय लगता है। 2 से 3 घंटे में अपने चरम पर पहुंच जाता है और 3 से 6 घंटे तक रहता है।
- इंटरमीडिएट-एक्टिंग इंसुलिन: जब आपके ब्लड में इंजेक्ट या पंप किया जाता है, तो यह लगभग 2 से 4 घंटे तक काम नहीं करता है। यह 4 से 12 घंटे तक ज़्यादा सक्रिय रहता है और 12 से 18 घंटे तक काम करता है।
- लॉन्ग-एक्टिंग इंसुलिन: यह आपके शरीर में एक दिन के लिए काम करता है, लेकिन आपके रक्तप्रवाह में प्रवेश करने में लंबा समय लेता है।
अपने ब्लड शुगर लेवल को ट्रैक करते रहें और लगातार हाई होने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।
मंत्रा केयर – MantraCare
यदि आप मधुमेह से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे हैं, तो मंत्रा केयर मदद के लिए उपलब्ध है। किसी मधुमेह विशेषज्ञ से जुड़ने के लिए अपना निःशुल्क ऑनलाइन मधुमेह परामर्श सत्र अभी बुक करें।
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