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डायबिटीज मेलिटस या डायबिटीज क्या है? Diabetes Mellitus Ya Diabetes Kya Hai?
आमतौर पर डायबिटीज मेलिटस को डायबिटीज के नाम से जाना जाता है। अगर आप डायबिटीज मेलिटस से पीड़ित हैं, तो इस बीमारी में आपका शरीर आपके द्वारा खाए जाने वाले भोजन से ऊर्जा को अवशोषित नहीं कर पाता है। भोजन से ऊर्जा अवशोषण नहीं हो पाने के कारण आपका शरीर इंसुलिन नहीं बना पाता या आपके शरीर की कोशिकाएं इसका ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं। यही कारण है कि डायबिटीज मेलिटस में आपके ब्लड शुगर का स्तर असामान्य रूप से बढ़ जाता है।
हालांकि, डायबिटीज मेलिटस का कोई इलाज नहीं है, लेकिन कुछ उपायों का पालन करके इसे नियंत्रित ज़रूर किया जा सकता है। डायबिटीज मेलिटस से पीड़ित व्यक्ति का शरीर इंसुलिन बनाने में असमर्थ होता है या इसे प्रभावी ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पाता है। यह आपके खून में बहुत ज़्यादा शुगर छोड़ देता है। आमतौर पर इस स्थिति को उच्च रक्त शर्करा (हाई ब्लड शुगर) कहते हैं। उच्च रक्त शर्करा का इलाज समय रहते इलाज नहीं करने या अनदेखा करने से यह कई गंभीर स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं का कारण बन सकती है।
हम भोजन से ऊर्जा कैसे प्राप्त करते हैं?
हमारे द्वारा खाये जाने वाले भोजन में फैट, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट मौजूद होते हैं। हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट को शुगर या ग्लूकोज में तोड़ देता है, क्योंकि ग्लूकोज हमारे रक्त के लिए ऊर्जा का एक ज़रूरी स्रोत है और रक्तप्रवाह में भेजी जाने वाली यह शुगर आखिर में ऊर्जा के लिए शरीर की अलग-अलग कोशिकाओं द्वारा अवशोषित हो जाती है। इस शुगर को रक्तप्रवाह से शरीर की सभी कोशिकाओं तक ले जाने का काम इंसुलिन हार्मोन द्वारा किया जाता है।
इंसुलिन एक हार्मोन है, जिसे अग्न्याशय (पैनक्रियाज) द्वारा जारी किया जाता है। अग्न्याशय पेट के पीछे एक अंग है, जो कई पाचन एंजाइमों को भी जारी करता है। जब रक्त में शर्करा मौजूद होती है, तो इंसुलिन हार्मोन का स्राव उत्तेजित होता है। इंसुलिन शरीर की कोशिकाओं से होने वाले ग्लूकोज के अवशोषण के लिए जिम्मेदार है। ग्लूकोज ऊर्जा के लिए तुरंत शरीर की कोशिकाओं के अंदर एक बार इस्तेमाल किया जाता है।
डायबिटीज/डायबिटीज मेलिटस के प्रकार – Diabetes/Diabetes Mellitus Ke Prakar
डायबिटीज मेलिटस के कई प्रकार हैं, जो निम्नलिखित हैंः
प्रीडायबिटीज
प्रीडायबिटीज एक गंभीर स्वास्थ्य स्थिति है, जिसमें आपका ब्लड शुगर सामान्य से ज़्यादा होता है। इसे डायबिटीज नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें आपका ब्लड शुगर डायबिटीज से कम होता है। प्रीडायबिटीज की स्थिति के कारण कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। खासतौर से इसके कारण टाइप 2 डायबिटीज और दिल की बीमारियों के विकसित होने की संभावना ज़्यादा होती है। ऐसे में दोबारा होने की संभावना वाली प्रीडायबिटीज को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
इसे टाइप 2 डायबिटीज भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि 100 एमजी./डीएल. से 125 एमजी./डीएल. के फास्टिंग ब्लड शुगर लेवल वाले व्यक्ति डायबिटिक होते हैं। हालांकि, रक्त शर्करा का स्तर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में थोड़ा अलग ज़रूर हो सकता है। किसी व्यक्ति को लंबे समय तक बिना किसी स्पष्ट लक्षण के प्रीडायबिटीज हो सकती है। ऐसे में किसी भी गंभीर स्वास्थ्य समस्या का सामना करने से पहले नीचे निम्नलिखित जोखिम कारकों वाले व्यक्ति को जांच करवानी चाहिए।
प्रीडायबिटीज के लक्षण हाई/लो ब्लड शुगर के कारण होते हैं।
- ज़्यादा प्यास लगना और मुंह सूखना- डायबिटीज मेलिटस में प्यास बढ़ जाती है
- ज़्यादा भूख लगना
- मुंह सूखना
- लगातार पेशाब आना
- कमजोरी और ऊर्जा की कमी
- धुंधली दृष्टि
- घाव ठीक होने में ज़्यादा समय लगना
प्रीडायबिटीज के जोखिम
- ज़्यादा वजन- इससे हाई ब्लड शुगर का खतरा बढ़ जाता है।
- उम्र बढ़ना- 45 या इससे ज़्यादा उम्र वाले लोगों को अपने ब्लड शुगर लेवल की बार-बार जांच करानी चाहिए।
- आनुवंशिकता- अगर आपके परिवार में किसी को डायबिटीज है, तो आप भी डायबिटीज से पीड़ित हो सकते हैं।
- अन्य कारक- नस्ल और लिंग जैसे कुछ अन्य कारक भी अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
प्रीडायबिटीज की रोकथाम
टाइप 2 डायबिटीज विकसित होने से प्रीडायबिटीज में दिल की बीमारियों के विकसित होने का ज़्यादा जोखिम होता है। इसे मैनेज करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि डायबिटीज से आपके शरीर के सभी अंगों को नुकसान पहुंचता है, जो अंधेपन, किडनी का खराब होना और नसों के नुकसान जैसी बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति को अपने खान-पान पर खास ध्यान देने की जरूरत है। कम शब्दों में कहें, तो यह जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है, लेकिन कुछ उपायों को पालन करके प्रीडायबिटीज को रोका जा सकता है-
- हर दिन 30 मिनट तक एक्सरसाइज करने से आपको ब्लड शुगर लेवल को कम करने में मदद मिल सकती है।
- अपने शरीर के वजन का कम से कम 5 प्रतिशत कम करें, क्योंकि शारीरिक रूप से सक्रिय रहने से प्रीडायबिटीज को रोका जा सकता है।
- स्वस्थ खाने का तरीका जानें और अपने आहार से अनहेल्दी भोजन को हटा दें।
टाइप 1 डायबिटीज
टाइप 1 डायबिटीज को इंसुलिन पर निर्भर डायबिटीज भी कहते हैं, जो डायबिटीज का एक पुराना प्रकार है। इस स्थिति में इम्यून सिस्टम द्वारा अग्न्याशय की इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, जिसके कारण हमारा शरीर इंसुलिन हार्मोन बनाने में असमर्थ होता है। आमतौर पर इस डायबिटीज की शुरुआत बचपन में होती है, इसलिए इसे जुवेनाइल-ऑनसेट डायबिटीज भी कहा जाता है। इस स्थिति में अग्न्याशय की ज़्यादातर कोशिकाएं स्थायी रूप से नष्ट हो जाती हैं और इससे आपके शरीर में इंसुलिन बहुत कम या बिल्कुल नहीं रहता है।
डायबिटीज वाले लगभग 10 प्रतिशत लोगों को इस प्रकार की डायबिटीज होती है। यह एक ऑटो-इम्यून बीमारी है, जो बचपन में वायरल इंफेक्शन या पोषण संबंधी जैसे बाहरी कारकों की वजह से होती है। इस प्रकार का डायबिटीज विकसित होने का एक प्रमुख कारण आनुवंशिकता भी हो सकता है। टाइप 1 डायबिटीज आपके शरीर के कई आंतरिक अंगों जैसे आंखों, नसों और किडनी के कारण, डायबिटिक रेटिनोपैथी, डायबिटिक न्यूरोपैथी में रक्त वाहिकाओं (ब्लड वेसल्स) को नुकसान पहुंचा सकता है।
टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण
टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण इस प्रकार हैंः
- लगातार पेशाब आना
- अत्यधिक वजन घटना
- थकान
- धुंधली दृष्टि
- सांस में दुर्गंध
- जलन/मिजाज बदलना
- ज़्यादा प्यास लगना
टाइप 1 डायबिटीज के जोखिम
कई कारक टाइप 1 डायबिटीज के विकास के जोखिम को बढ़ाते हैं, जैसेः
- वायरल इंफेक्शन- बचपन में कुछ वायरल इंफेक्शन टाइप 1 डायबिटीज के विकास का कारण बन सकते हैं।
- नस्ल- कुछ नस्ल और जातियों में दूसरे के मुकाबले में टाइप 1 डायबिटीज विकसित होने का ज़्यादा जोखिम होता है, जैसे- कोकेशियान अमेरिकी।
- पारिवारिक इतिहास- अगर आपके परिवार में किसी व्यक्ति को टाइप 1 डायबिटीज है, तो आपके शरीर में इस बीमारी के विकसित होने की संभावना ज़्यादा होती है।
- बचपन में लिया गया आहार- एक शोध पर किए गए अध्ययन के मुताबिक, प्रारंभिक आहार की गुणवत्ता किसी व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, लेकिन गाय के दूध जैसे कुछ खाद्य पदार्थ बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज के विकास का जोखिम बढ़ाते हैं।
- कमजोर इम्यून सिस्टम- टाइप 1 डायबिटीज एक ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर है, जिसमें इम्यून सिस्टम ठीक से काम नहीं करता है। इसलिए कमजोर इम्यून सिस्टम इसके जोखिम कारकों में से एक हो सकता है।
टाइप 1 डायबिटीज का उपचार
- अपने ब्लड शुगर लेवल की नियमित जांच कराएं और अपनी जीवनशैली में बदलाव करें।
- ब्लड शुगर को सामान्य रखने के लिए नियमित रूप से एक्सरसाइज और स्वस्थ खान-पान जरूरी है।
- उपयुक्त तरीकों और दवाओं के अनुसार इंसुलिन लें।
- मेटफॉर्मिन डायबिटीज की एक अन्य दवा है और इसका इस्तेमाल पहले टाइप 2 डायबिटीज का इलाज करने के लिए किया जाता था, लेकिन अब इसे टाइप 1 डायबिटीज में इंसुलिन प्रतिरोध विकसित करने वाले मरीजों के लिए भी निर्धारित किया जाता है।
टाइप 2 डायबिटीज
टाइप 2 डायबिटीज को पहले गैर-इंसुलिन-निर्भर (नॉन-इंसुलिन-डिपेंडेंट) या वयस्क-शुरुआत डायबिटीज (एजल्ट-ऑनसेट डायबिटीज) कहा जाता था। इस स्थिति में डायबिटीज के प्रारंभिक चरण के दौरान अग्न्याशय पर्याप्त से ज़्यादा इंसुलिन का स्राव करता है। ऐसी स्थिति में शरीर इंसुलिन के प्रति प्रतिरोध विकसित करता है और इसके इस्तेमाल में रुकावट पैदा करता है। इस अवस्था में ब्लड शुगर का स्तर कम हो जाता है, जिससे निम्न रक्त शर्करा (लो ब्लड शुगर ) यानी हाइपोग्लाइसीमिया की समस्या हो जाती है।
शरीर में ज़्यादा इंसुलिन की उपस्थिति से अग्न्याशय इंसुलिन का उत्पादन बंद कर देता है या कम से कम मात्रा में इसका उत्पादन करता है। टाइप 2 डायबिटीज वाले लोग कीटोएसिडोसिस विकसित कर सकते हैं, जिसकी वजह से अत्यधिक उच्च रक्त शर्करा हो सकता है। उच्च रक्त शर्करा गंभीर डिहाइड्रेशन, नींद आना, मानसिक भ्रम और सबसे खराब स्थिति में दौरे का कारण बन सकती है।
टाइप 2 डायबिटीज में आपके शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के लिए प्रतिक्रिया नहीं करती हैं। टाइप 1 डायबिटीज की तुलना में टाइप 2 डायबिटीज ज़्यादा सामान्य और अक्सर हल्का होता है, लेकिन यह टाइप 1 डायबिटीज जैसी गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का कारण बन सकता है और दिल की बीमारियों की संभावना को बढ़ा सकता है।
- डायबिटीज का पारिवारिक इतिहास
- पैरों में झनझनाहट/सुन्न होना
- ज़्यादा प्यास लगना
- मोटापा
- धुंधली दृष्टि
- पैर में ऐंठन
- खुजली
- नींद आना/मानसिक भ्रम
- मिजाज़ बदलना
टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम
- मोटापा या ज़्यादा वजन
- प्रीडायबिटीज होना
- हाई कोलेस्ट्रॉल, पीसीओडी, दिल की बीमारी जैसी स्वास्थ्य समस्याएं होना।
- जाति
- लिंग
- अस्वस्थ खाना
- शारीरिक गतिविधि न करना
- डायबिटीज के मरीजों के लिए दवाएं लेना बेहद खतरनाक है।
टाइप 2 डाबिटीज का उपचार
बताए गए सभी जोखिम वाले कारकों से व्यक्ति में टाइप 2 डायबिटीज विकसित होने की संभावना बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है। हालांकि, टाइप 2 डायबिटीज का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन कुछ उपायों के ज़रिए इसे नियंत्रित करना संभव है, जैसे-
- परहेज
- व्यायाम
- वजन घटना
- इंसुलिन इंजेक्शन
- निर्धारित दवाएं लेना।
आप जीवन शैली में व्यायाम और स्वस्थ भोजन जैसे बदलाव करके अपने ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित कर सकते हैं। इससे डायबिटीज की कुछ जटिलताओं को रोकने में मदद मिल सकती है। डायबिटीज मेलिटस के सभी मामलों में वजन कम करना और डाइटिंग करना फायदेमंद साबित होता है।
गर्भकालीन (जेस्टेशनल) डायबिटीज
गर्भकालीन यानी जेस्टेशनल डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है, जिसमें गर्भवती महिलाओं में हाई शुगर लेवल विकसित होता है। गर्भकालीन डायबिटीज उन महिलाओं में विकसित होता है, जिन्हें गर्भावस्था से पहले किसी भी प्रकार की डायबिटीज नहीं थी। इस प्रकार की डायबिटीज अलग-अलग प्रकार के हार्मोन की वजह से होती है, जो नाल (प्लेसेंटा) से स्रावित होते हैं। इनमें से कुछ हार्मोन ब्लड शुगर का लेवल या शरीर के इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ाते हैं, जबकि कुछ स्थितियों में गर्भवती महिला का अग्न्याशय इंसुलिन का ज़्यादा उत्पादन करने में असमर्थ होता है, जिसकी वजह से ब्लड शुगर लेवल ज़्यादा हो जाता है यानी बढ़ जाता है। हालांकि, बच्चे के जन्म के बाद गर्भकालीन डायबिटीज गायब हो जाती है, लेकिन यह गर्भावस्था के दौरान और जन्म से पहले मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य में कुछ जटिलताएं पैदा कर सकती है। इसके अलावा यह बाद में जीवन में मां और बच्चे में डायबिटीज विकसित होने का जोखिम भी बढ़ा सकती है। जेस्टेशनल डायबिटीज दो प्रकार का होती है, जिनमें क्लास ए1 जेस्टेशनल डायबिटीज को आहार और व्यायाम से नियंत्रित किया जा सकता है। जबकि, क्लास ए2 जेस्टेशनल डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन या अन्य ओरल दवाओं की ज़रूरत होती है।
जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण
जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण डायबिटीज मेलिटस से मिलते-जुलते होते हैं, जैसे-
- बार-बार प्यास लगना
- थकान
- लगातार पेशाब आना
- धुंधली दृष्टि
गर्भावस्था में जेस्टेशनल डायबिटीज की जटिलताएं
ब्लड शुगर के नियंत्रित स्तर वाले लोगों को परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है, लेकिन उचित तरीके से नियंत्रित नहीं करने पर यह गर्भावस्था में कुछ जटिलताओं का कारण बन सकता है, जैसे-
- बच्चे में ज़्यादा फैट होनाः अनियंत्रित गर्भकालीन डायबिटीज में मां और बच्चे दोनों का शुगर लेवल बढ़ जाता है, जिससे बच्चा ज़्यादा बढ़ सकता है।
- सी-सेक्शनः गर्भावधि डायबिटीज के मामले में बच्चा ज़्यादा बड़ा हो जाता है, जिससे बच्चे के जन्म में कई जटिलताएं होती हैं। ऐसी स्थिति में गर्भावधि डायबिटीज वाली महिलाओं की डिलीवरी सी-सेक्शन से की जाती है।
- बढ़े हुए ग्लूकोज लेवल के आधार पर गर्भकालीन डायबिटीज से अन्य जटिलताएं भी हो सकती हैं।
जेस्टेशनल डायबिटीज का उपचार
गर्भकालीन डायबिटीज आमतौर पर अस्थायी होती है और बच्चे के जन्म के बाद अपने आप गायब हो जाती है, लेकिन गर्भावस्था के दौरान इसे नियंत्रित करने के लिए आपको निम्न कार्य करने चाहिए-
- सही भोजन खाएं- किसी भी कीमत पर खाना न छोड़े। ऐसी स्थिति में दिन में कम से कम तीन बार भोजन करना ज़रूरी है। इसके साथ ही कम चीनी वाले स्वस्थ खाद्य पदार्थ ही खाएं। आपको केक और आइसक्रीम जैसे खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए और इसके बदले फलों, नट्स और बीजों को अपने आहार में शामिल करना चाहिए।
- नियमित व्यायाम करें- नियमित रूप से व्यायाम करें, क्योंकि इससे आपको वजन बढ़ने से रोकने और सामान्य प्रसव में मदद मिलती है। आप सिर्फ 20 मिनट हल्के व्यायाम कर सकती हैं। हालांकि, आपको किसी भी व्यायाम को दिनचर्या में शामिल करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श ज़रूर करना चाहिए। इस स्थिति में आपको भारी व्यायाम करने से बचना चाहिए।
- अपने ब्लड शुगर लेवल पर नज़र रखें- अपने ब्लड शुगर लेवल को जांचते रहें और किसी भी तरह की परेशानी होने पर तुरंत डॉक्टर से बात करें।
- अपनी गर्भावस्था को मॉनिटर करें- अगर आपको जेस्टेशनल डायबिटीज है, तो अपने बच्चे के स्वास्थ्य की ज़्यादा जांच करें। इस स्थिति में सबसे ज़रूरी है कि अपने डॉक्टर के संपर्क में रहें और स्वस्थ दैनिक आदतों को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।
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